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|संग्रह=सन्दीप कौशिक
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(23)
सांग:– देवी गंगामाई (अनुक्रमांक – 12)

'''कन्या बोली ऋषि मेरे तै, करवाले नै ब्याह,'''
'''पेट मै करूंगी डेरा, बणकै तेरी मां ।। टेक ।।'''

मेरा-तेरा एक पिता, और माता एक सै,
चौदह विधा वेद-विधि, ज्ञाता एक सै,
तू राजऋषि मै ब्रह्मभादवी, नाता एक सै,
तीन लोक मै मेरी जोड़ी का, वर चाहता एक सै,
अलख-निरंजन दाता एक सै, करणीया सबका न्या।।

मेरा जन्म होया जिब, खुशी मनाई तीन जहान नै,
काल बली भी आता था, मनै रोज खिल्हाण नै,
अग्नि ल्यावै भोजन, इन्द्र बरसै न्हाण नै,
लाड करे थे ब्रहमा जी, और विष्णु भगवान नै,
खुशी मनाई शशि-भान नै, करी धूप और छां।।

करके लाड पृथ्वी माता, मनै पाल्या करती,
आदरमान मेरा जगदम्बे, ज्वाला करती,
पार्वती-ब्रह्माणी-लक्ष्मी, मनै संभाल्या करती,
भेमाता-भोई धोरै तै, ना हाल्या करती,
चाल्या करती, शिवजी कै भी सिर पै धरके पाँ।।

जोतकलां गंगा-जमना, त्रिवेणी धाम की,
चार वेद नै महिमा गाई, मेरे नाम की,
होई रवाना, चाहना कोन्या, घर और गाम की,
कोए चातर करै विचार, कविता इसी राजेराम की,
उसनै पद्वी कवि नाम की, जो भेद खोलै गा।।
</poem>
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