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08:54, 7 अगस्त 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नवीन रांगियाल
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
जंगल समझते थे
पेड़ उन्हीं के होते हैं
असल में
पेड़ कुल्हाड़ियों के होते हैं
पेड़ समझते थे
उनके फूल-पत्ते होते हैं
और कलियाँ भी
दरअसल
उनकी सिर्फ आग होती है
सिर्फ ख़ाक होती है
अक्सर पेड़ खुद कुल्हाड़ियों की तरफ़ होते हैं
उनकी धार की तरफ़ होते हैं
जैसे आदमी, आदमी की तरफ़ होता है।
</poem>