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अकथ नाम / नवीन रांगियाल

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<poem>
मनुष्य जन्मता कुछ भी नहीं
मरता गांधी है
गोडसे और लोहिया मरता है कभी

इस बीच
कभी कभार
क, ख, ग, भी

बिगुचन का एक
पूरा संसार आदमी

मैं वही मरूँगा
जो रोया था
नवंबर में
एक प्रथम पहर

अकथ नाम

गांधी नहीं
लोहिया भी नहीं
क, ख, ग, तो कतई नहीं

या फिर
अंत तक
या अंत के बाद भी
उस पार
अपनी अंधेरी गली में
प्रतीक्षा करूँगा
स्वयं की।
</poem>
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