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09:25, 8 अगस्त 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=सभ्यता और जीवन
}}
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<poem>
चौथाई दरवाजा खोल
निमिष भर नेह से निहारा क्या
हारा गया मैं
जीतता ही
तो जीतना कहाता
लहर भर पूरा देखा भी न था
और पटल पर पाटल सा चेहरा
उग-उग आता है।
</poem>