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09:28, 8 अगस्त 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=सभ्यता और जीवन
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जिन्दा रहना हो
तो अडिग रहो
राजनीति चाहेगी
समझौता स्वतंत्र विचारों की बलि
तुम्हारा झुकाव पुलों की तरह
जनाक्रोश पार जाने को।
</poem>