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जागो / कुमार मुकुल

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{{KKRachna
|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=​समुद्र के आंसू
}}
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<poem>
जागो युवा उठो ऐ दोस्‍तो
बहुत सोए अब नींद तोड़ दो
जंग लगी है उसे झकझोर दो
बंधनों को ऐ तुम बिखेर दो

समाज में जो लगी आग है
मानवों के मुख पे दाग है
विषधर जो छोड़ते झाग हैं
हंसों के वेष में काग हैं

इन सब की तुम पोल खोल दो
डरो नहीं जेहाद बोल दो।
</poem>
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