2,133 bytes added,
09:40, 9 अगस्त 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामविलास शर्मा-२
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सुना आपने
चाँद बहेलिया
जाल रूपहला कँधे पर ले
चाँवल की कनकी बिखेर कर
बाट जोहता रहा व्यथित हो
क्षितिज-शाख के बिल्कुल नीचे
किन्तु न आई नीड़ छोड़कर
रंग-बिरंगी किरन बयाएँ
सुना आपने
सुना आपने
फाग खेलने
क्वाँरी कन्याएँ पलाश की
केशर घुले कतोरे कर में लिये
ताकती खड़ी रह गईं
ऋतुओं का सम्राट
पहन कर पीले चीवर
बुद्ध हो गया
सुना आपने
सुना आपने
अभी गली में
ऊँची ऊँची घेरेदार घँघरिया पहिने
चाकू छुरी बेचने वाली
ईरानियों की निडर चाल से
भटक रही थी, लू की लपटें
गलत पते के पोस्टकार्ड सी
सुना आपने
सुना आपने
मोती के सौदागर नभ की
शिशिर भोर के मूँगे के पट से छनती
पुखराज किरन सी
स्वस्थ, युवा, अनब्याही बेटी
उषाकुमारी
सूटकेस में झिलमिल करते
मोती, माणिक, नीलम, पन्ने, लाल, जवाहर
सब समेटकर
इक्के वाले सूरज के सँग
हिरन हो गई, हवा हो गई
मोती के सौदागर नभ की
बेशकीमती मणि खो गई
सुना आपने
</poem>