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यौम-ए-मई / हबीब जालिब

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न ज़िल्लत के साए में बच्चे पलेंगे
न हाथ अपने क़िस्मत के हाथों मलेंगे
मुसावात के दीप घर -घर जलेंगे
सब अहल-ए-वतन सर उठा के चलेंगे
न होगी कभी ज़िंदगी ज़िन्दगी वक़्फ़-ए-मातम
फ़ज़ाओं में लहराएगा सुर्ख़ परचम
</poem>
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