भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=संदीप ‘सरस’ 'सरस'
|अनुवादक=
|संग्रह=
{{KKCatGeet}}
<poem>
शारदे लेखनी में समा जाइए, मेरे गीतों की गरिमा सँवर जायेगी।
प्रेरणा आप हो अर्चना आप हो ,मेरे मन से जुड़ी भावना आप हो।
काव्य की सर्जना स्नेह है आपका,मेरे हर शब्द की साधना आप हो।
हाथ रख दो मेरे शीश पर स्नेह से,काव्य प्रतिभा हमारी निखर जायेगी।
सारगर्भित रहे मुक्तकों -सा सदा ,और जीवन बने सन्तुलित छंद सा।
पारदर्शी रहे गीत की भावना ,हो सृजन सर्जन सर्वदा शुद्ध आनन्द सा।
ज्ञान की वर्तिका प्रज्वलित कीजिए,मेरे जीवन में आभा बिखर जायेगी।
मेरी अनुभूतियों को गहन कीजिए,भावनाओं को अभिव्यक्ति दे पाऊं पाऊँ माँ।
भाव ऐसे हृदय में जगा दीजिएकल्पना को सहज शक्ति दे पाऊं पाऊँ माँ।
लेखनी को हमारी मुखर कीजिए,शब्द की साधना भी सुधर जायेगी।
</poem>