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[[Category: ताँका]]
<poem>
निरभ्र नभ
शैलशृंग चूमते
दो घूँट मिल जाएँ
तो तपन बुझाएँ ।
मोती- सा मन
बरसों था सँभाला
कुछ निपट अंधे,
अकर्ण साथ बँधे।
काई -सी छँटी
अपनों की भीड़ भी
एक तेरा आँचल
एकमात्र सम्बल।
तोड़ने चले
जीवन के घरौंदे
पैरों तले रौंदने
खुद ही मिट गए।
चले जाएँगे,
याद यह रखना