भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रणव मिश्र 'तेजस' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रणव मिश्र 'तेजस'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सरे-शब कोई जब हमारा गया है
वफ़ा का गरेबां उतारा गया है

ख़बर है की मैं अब बदन में नहीं हूँ
मुझे इस बदन में ही मारा गया है

ये नस्लें हवस पर गुज़ारा करेंगी
इन्हें बेरुख़ी पर सँवारा गया है

मैं दरिया के पीछे वहां तक गया हूँ
जहां तक नदी का किनारा गया है

हवा छू के मुझको मिली जा के उससे
मुझे जिस नगर से पुकारा गया है

कहाँ तक छिपाएं ये दिल का जुनूँ हम
नज़र से वही इक नज़ारा गया है

लुटे होते पहली दफ़ा तो न रोते
भला शख़्स अबकी दोबारा गया है
</poem>
761
edits