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{{KKRachna
|रचनाकार=हरीश प्रधान
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
कुर्सी की ख़ातिर होते हैं नेता लहूलुहान
बड़े गर्व से बोलो यारों मेरा देश महान्
संसद और विधानसभा में तर्क न सम्भाषण
खींचो, मारो, स्पीकर और पारित करो विधान
करी तरक्की कितनी हमने आज़ादी के बाद
दूध और पानी दोनों की कीमत एक समान
जूते-जूते खरी बट रही, है चुनाव का खेल
हथ कण्डे और डण्डों पर, ऊँचे तने वितान
सुख सुविधा को छोड़ देशहित में लहू बहाया
व्यर्थ शहादत गयी, देखिये मूरख बने 'प्रधान'
</poem>
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|रचनाकार=हरीश प्रधान
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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कुर्सी की ख़ातिर होते हैं नेता लहूलुहान
बड़े गर्व से बोलो यारों मेरा देश महान्
संसद और विधानसभा में तर्क न सम्भाषण
खींचो, मारो, स्पीकर और पारित करो विधान
करी तरक्की कितनी हमने आज़ादी के बाद
दूध और पानी दोनों की कीमत एक समान
जूते-जूते खरी बट रही, है चुनाव का खेल
हथ कण्डे और डण्डों पर, ऊँचे तने वितान
सुख सुविधा को छोड़ देशहित में लहू बहाया
व्यर्थ शहादत गयी, देखिये मूरख बने 'प्रधान'
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