भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
तुमने कहा, ‘‘मैं एक दूसरे देश चला जाऊँगा,
मैं एक दूसरे साहिल को परखूँगा,
एक दूसरा शहर होगा जो इस शहर से बेहतरीन होगा।होगा ।यहाँ मैं जो भी करता हूँ, वह अग्रिम में तिरष्कृत तिरस्कृत हैऔर मेरा हृदय एक मृतक के हृदय की तरह दफ़्न है।है ।मेरा मन कब तक इस दलदल में रह पाएगा?
जहाँ भी मुड़ता हूँ, जहाँ भी मैं देखता हूँ, मैं देखता हूँ
अपने जीवन के खंडहर ही!—जहाँ मैंने बिताए और उनमें पैबंद पैबन्द लगाए और व्यर्थ में गँवाए इतने सारे वर्ष!’’
तुम नहीं खोज पाओगे कोई भी नया देश।देश ।तुम नहीं खोज पाओगे कोई भी नया साहिल।साहिल ।
यह शहर तुम्हारा पीछा करेगा, तुम भटकोगे
उन्हीं सड़कों पर और उन्हीं पड़ोसों में बुढ़ा जाओगे।जाओगे ।
उन्हीं घरों में तुम्हारे केश धवल हो जाएँगे,
और तुम हमेशा उसी शहर में पहुँचोगे। पहुँचोगे । छोड़ दो उम्मीदकिसी दूसरी जगह जाने की। की । कोई जहाज़, कोई मार्गतुम्हें वहाँ नहीं ले जा सकता!
जिस तरह तुमने अपने जीवन को नष्ट कर दिया इस मामूली कोने में,
वैसे ही तुमने उसे नष्ट कर दिया पृथ्वी पर हर जगह!
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits