भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
बद्दुआएँ जो बाँटें
दग्ध ही होंगे।
112पलकें चूमेंवातायन से झाँकेभोर किरन।113पुण्य सलिलाहोगी जाह्नवी मानातुम भी तो हो !114निर्मलमना!रूप का हो सागरभाव- ऋचा हो।115भाव-सृष्टि होसुधा -वृष्टि करतीमन में बसो !116प्राणों की लयजीवन संगीत होमनमीत हो।117चन्दनमनमलयानिल साँसेंअंक लिपटें।118नत पलकेंरूप पिए चाँदनीचूम अलकें।
<poem>