गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
नर हो, न निराश करो मन को / मैथिलीशरण गुप्त
3 bytes removed
,
02:30, 2 अक्टूबर 2019
किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान
जन
हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
Sharda suman
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader,
प्रबंधक
35,148
edits