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बन्द कर लो द्वार / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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19:02, 6 अक्टूबर 2019
'''बीतने ही वाला है'''
ये तीसरा पहर।
143
हुई अँजोर
बज उठी साँकल
खोलो जी द्वार!
144
हुलसा उर
सुनी थी पदचाप
आए वे द्वार।
145
हेरते तट
नदी कब रुकी है
उफनी भागी।
-0-
<poem>
वीरबाला
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