2,139 bytes added,
09:45, 11 अक्टूबर 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गौरव गिरिजा शुक्ला
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जश्न हो तो, रेत की तरह फिसलता है,
इंतज़ार करो किसी का, तो वक़्त का पता चलता है।
हालात अच्छे हों तो हर कोई अच्छा रहता है,
वक्त बुरा आए तो इन्सां का पता चलता है।
मुफ़लिसी में तकलीफ़ तो है मगर ये फ़ायदा भी,
दोस्तों की शक्ल में दुश्मनों का पता चलता है।
रिश्ता नहीं, ख़बर नहीं, सिलसिला नहीं, मगर फिर भी,
मेरी कलम की स्याही से वफ़ा का पता चलता है।
बेशक तू दूर है मुझसे मगर जुदा नहीं,
मेरे सीने में आज भी तेरी धड़कन का पता चलता है।
सब कुछ छिपा सकते हो मगर ये नाज़ुक अहसास नहीं,
नज़रों ही नज़रों में मुहब्बत का पता चलता है।
ख़ुदा न करे किसी को मदद की भीख मांगनी पड़े,
ऐसे मौकों पर ही अपनों का पता चलता है।
छोड़कर मां-बाप को कैसे सजा लेते हैं आशियाँ,
घर में बुज़ुर्ग हों तो दुआओं का पता चलता है।
ऊंची मीनारें खूबसूरती तो बयां करती हैं,
मगर तवारीख़ से उनकी बुनियाद का पता चलता है।
</poem>