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अनाथ / मुहम्मद अल-मग़ूत / विनोद दास
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10:51, 24 अक्टूबर 2019
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<poem>
ओह
!
वह सपना
!
वह सपना
!
ठोस सोने की मेरी कार लड़कर चकनाचूर हो गई
उसके पहिये जिप्सियों की तरह छितर गए
अनिल जनविजय
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