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सीता: एक नारी / द्वितीय सर्ग / पृष्ठ 12 / प्रताप नारायण सिंह
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16:05, 5 नवम्बर 2019
<poem>
उनके लिए भी जो रहीं निर्दोष, होकर बन्दिनी
इस भ्रष्ट सामाजिक व्यवस्था के अनल
ने
में
हवि बनी
तपना पड़ेगा आग में, जब चाहते नरपति यही
Pratap Narayan Singh
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