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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रताप नारायण सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=नवगीत / प्रताप नारायण सिंह
}}
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<poem>
अब भी घुटनों के बल चलता
बीते सत्तर साल
बड़ा नहीं होता यह बच्चा
अच्छा बाकी हाल
डाँट डपटकर पहले इसको
हँसते हुए रुलाते
फिर पकड़ाकर एक झुनझुना
रोता मन बहलाते
बेचारेपन में इसने है
लिया स्वयं को ढाल
मायावी आकर्षण में बिंध
सीढ़ी चढ़ता जाता
चुभ जाता तकुआ उँगली में
यह मूर्छित हो जाता
समझ नहीं किंचित पाता
बूढ़ी परियों की चाल
धीर और गंभीर सभी
नेपथ्य पकड़ रह जाते
हँसा सकेंवे जोकर ही बस
इसके मन को भाते
बापू ! झुककर देखो
कैसा लोकतंत्र बेहाल
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=नवगीत / प्रताप नारायण सिंह
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अब भी घुटनों के बल चलता
बीते सत्तर साल
बड़ा नहीं होता यह बच्चा
अच्छा बाकी हाल
डाँट डपटकर पहले इसको
हँसते हुए रुलाते
फिर पकड़ाकर एक झुनझुना
रोता मन बहलाते
बेचारेपन में इसने है
लिया स्वयं को ढाल
मायावी आकर्षण में बिंध
सीढ़ी चढ़ता जाता
चुभ जाता तकुआ उँगली में
यह मूर्छित हो जाता
समझ नहीं किंचित पाता
बूढ़ी परियों की चाल
धीर और गंभीर सभी
नेपथ्य पकड़ रह जाते
हँसा सकेंवे जोकर ही बस
इसके मन को भाते
बापू ! झुककर देखो
कैसा लोकतंत्र बेहाल
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