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12:26, 29 नवम्बर 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र देथा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
तुम्हारे हृदयावरण का
अंगोच्छन कर पाया
मैंने इतना ही
कि "तुम्हारा प्रेम"
मेरे खातिर ही है जन्मों जन्मों तक!
शायद कलेजा कहा था आपने इसलिए ही।
पता था तुम्हें प्रेम में अद्भुत हो जाना
हम गिरते हर रोज अवसादों में
शाम फिर मीठी हो चलती
अक्सर तुम कहा करती
कि गहरे दुख प्रेम में नहीं
प्रेम की प्रस्तावना में कहीं अटके होतें हैं
</poem>
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