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हेत रौ दरख्त / पूनम चंद गोदारा

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<poem>
जिंया
पीळा पड्या है पत्ता
आक रा

जिंया
दा'वै स्यूं झूळसग्या है
पान बोरड़ी रा

जिंया
काळी पड़गी है फल्यां
सोनेळी री

बिंया इज
पीळा पड़ जासी रंग
एक दिन
मिनखां रै हेत रा भी

जिंया
झड़ै हैं बिन पतझड़ रै
ऐ पीळा पत्ता

बिंया इज
एक दिन चुपकै स्यूं
न्हाख देसी कान

आपरी डाळ स्यूं
थारै-म्हारै ईं हेत रा
फूल

थूं जाणै है नी बैली-
के बिना फूलां पत्ता दरख्त
दरख्त नीं लागै कदै !
</poem>
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