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समाजवादी दर्शन / एस. मनोज

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<poem>
वोट हमारा राज तुम्हारा
जिसने ये सिखलाया था
जन ज्वारों पर चढ़कर जिसने
नया राज फिर लाया था।
वाम लुढ़कता रहा सदा
दक्षिण की राह बनाते ये
हर आंदोलन कमजोर हुआ
दुखिया की आह दबाते ये।
चेले इनके सत्ता मद में
चूर बने इठलाते हैं
भ्रष्टाचार की जांच हुई तो
हवा जेल की खाते हैं।
सत्ता के लोभी सब चेले
कुर्सी की जुगत बिठाते हैं
कुर्सी की तिकड़म में ये अब
तनिक नहीं शरमाते हैं।
</poem>
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