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03:11, 15 दिसम्बर 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|संग्रह=
}}
[[Category:चोका]]
<poem>
'''पोंछ लो आँसू'''
'''चलने की बेला है'''
लम्बा सफ़र
ये राही अकेला है ।
काफ़िला साथ
कब किसके चला,
बटमारों ने
हमें सदा ही छला ।
उत्सव बीता
उठ रहा मेला है ।
'''अँधेरे घिरे'''
'''कोई न साथ आया ,'''
'''एक तुम थे'''
'''साथ मेरा निभाया ।'''
मेरे दर्द को
तुमने भी झेला है ।
सिन्धु का तट
देखो ये आ गया है,
अलको बँधा
मन रुला गया है
अब बिदा दो
ख़त्म हुआ खेला है।
लहरों का रेला है ।
-0-
</poem>