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|रचनाकार=दीनानाथ सुमित्र
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|संग्रह=सवा लाख की बाँसुरी / दीनानाथ सुमित्र
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<poem>
381
नेता जी थे जेल में, हत्या का आरोप।
मंत्री का पद पा गये, जनता को है होप।।

382
राजनीति गंदी हुई, गंदा हुआ समाज।
राम भरोसे चल रहा, अपना प्यारा आज।।

383
जनता समझेगी अगर, राजनीति की चाल।
आयेगा बदलाव भी, जन होगा खुशहाल।।

384
नेताजी के हाथ में, सिर्फ़ मुफ्त व्याख्यान।
झाड़ू इन के हाथ में, झाड़ें हिदुस्तान।।

385
नेताजी ने कह दिया, मन से पढ़ना बाल।
सारी दुनिया जानती, विद्यालय का हाल।।

386
नेताजी जो चाह लें, देंगे विश्व सँवार।
फिर भी वह चुपचाप हैं, चुप बैठी सरकार।।

387
नेताजी का भार है, सौ केजी के पार।
पहले थे सिकिया मगर, अब हैं दैत्याकार।।

388
नेताजी क्वारे मरे, बीबी छोड़ हजार।
बहुत भले थे इसलिए, नहीं पड़े बीमार।।

389
नेताजी को क्या पता, कैसा है संसार।
सब सुख उन के हाथ है, छोटा है परिवार।।

390
नेताजी की जीत में, है भारत की जीत।
जनता प्यारी पस्त है, रचे शोक संगीत।।

391
नेताजी की जीभ का, रहा एक ही काम।
राम नाम से भी बड़ा, है विकास का नाम।।

392
नेता का संसार में, फैल रहा है नाम।
जनता की तो रह गई, वही सुबह वह शाम।।

393
नेताजी श्रीमान हैं, जनता जी श्रीहीन।
सेठों को ही दे रहे, सब की रोटी छीन।।

394
नेता गया चुनाव में, लेकर कोटि करोड़।
जीत गया संसद गया, फल पाया बेजोड़।।

395
नेताजी को मत करो, किसी तरह बदनाम।
ये तो पूरे कृष्ण हैं, ये ही हैं श्रीराम।।

396
नेताजी पहने सखी, जून महीना कोट।
इसी कोट को देख कर, जनता देती वोट।।

397
नेताजी को जेठ का, क्यों होगा आभास।
गाड़ी में ए-सी लगी, ए-सी है आवास।।

398
नेताजी के राज में, सब से सस्ती जान।
जीना जिस को है यहाँ, बने भक्त हनुमान।।

399
नेताजी ने कर दिया, कौशल का विस्तार।
निकल रही है रेत से, शुद्धामृत की धार।।

400
नाली से ईंधन मिले, नेता का विज्ञान।
नेताजी अद्भुत बड़े, अद्भुत उनका ज्ञान।।
</poem>
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