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खण्ड-1 / यहाँ कौन भयभीत है / दीनानाथ सुमित्र
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16:57, 19 दिसम्बर 2019
मैं रस का रसपान कर, बन बैठा रसखान।
दोहा-दोहा हो गया, अब मेरा ईमान।।
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अनचाहे ही पा गया, पूरी है हर चाह।
मनवां बेपरवाह था, मनवां बेपरवाह।।
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