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{{KKRachna
|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर'
}}{{KKCatGhazal}}<poem>उम्र भर हम रहे शराबी से <br>दिल-ए-पुर्खूं की इक गुलाबी से<br><br>
खिलना कम-कम कली ने सीखा है<br>उसकी आँखों की नीम ख़्वाबी से <br><br>
काम थे इश्क़ में बहुत ऐ मीर <br>
हम ही फ़ारिग़ हुए शताबी से
</poem>