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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>

बन रहा इतिहास नूतन
जाग शोषित देख सम्मुख
::है नया संसार !

स्वार्थ में जब विश्व सारा डूब हिंसा कर रहा था,
मनुज अत्याचार से था त्रस्त प्रतिपल डर रहा था,
चल पड़ी तब घोर आँधी
::और विप्लव ज्वार !

नष्ट जिसमें हो गये सब आततायी क्रूर राक्षस,
और पूँजीवाद तानाशाह की तोड़ी गयी नस,
मुक्त जनता-युग हमारे
::सामने-साकार !
1944
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