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Kavita Kosh से
हम महकूमों<ref>रियाया या शासित</ref> के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हक़महकम<ref>सताधीश</ref> के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से