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17:39, 19 जनवरी 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अंकिता कुलश्रेष्ठ
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<poem>
बीत गया जब दिन वैरागी
आई मधुरिम रात,
रीत गए हैं दिवस उजाले
आई श्यामल रात।
थका हुआ मन, थका हुआ तन
टूटे कुछ सपने
लिटा नींद की गोदी हमको
थपकी देती रात।
हमको भाती मौन साधकर
आती दुल्हन सी,
जड़े हुए हैं चांद - सितारे
चूनर ओढ़े रात।
दिन ले आता नए पुराने नित्य
अनगिनत बोझ
क्लांत हुए जीवन को ऊर्जा
देती प्रेमिल रात।
रूठी बैठी रही नयन से
बहता अविरल नीर,
लिए सजन को संग मनाने
पहुंची झिलमिल रात।
जग सारा सो जाता
सुधबुध खोकर मूंदे आंख,
जगकर सबको देखा करती
माँ के जैसी रात।
</poem>