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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अन्तराल / महेन्द्र भटनागर
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ध्येय पहुँचने की तैयारी !

कितना बीहड़ दुर्गम रे पथ,
उलझ-उलझ जाता जीवन-रथ,
पर, रोक नहीं सकती मेरी गति को कोई भी लाचारी !

माना झंझा मुझको घेरे,
पर, चरण कहाँ डगमग मेरे ?
किंचित न कभी विपदाओं के सम्मुख मैंने हिम्मत हारी !

इस जीवन में कितनी हलचल,
बिखरा मिलता है गरल-गरल,
साधन हीना, संबल हीना, पर संघर्ष किये हैं भारी !

इस पथ पर चलना बड़ा कठिन,
इस पथ पर जलना बड़ा कठिन,
जो इस पथ पर टिक पाया, वह केवल जीने का अधिकारी !
1945
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