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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>

:मूल्य मेरे आँसुओं का
:कब जगत पहचान पाया ?

:देखता ही तो रहा वह
:आँसुओं की धार अपलक,
:दो नयन निर्मम लिए बस
:स्नेह से हों रिक्त दीपक,
::वेदना के स्वर मिलाकर
::किस मनुज ने गान गाया ?

:कौन है जो सिसकियों का,
:मूक आहों का, मरण का,
:पंथ सहचर ज़िन्दगी का
:मिल गया हो ठीक मन का,
::कौन है जिसने हृदय की
::उलझनों से त्राण पाया ?
1946
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