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18:45, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:बहने देना आँसू मेरे किन्तु, स्नेह-उपहार न देना !
::पथ पर जब मैं रुक-रुक जाऊँ,
::प्रति पग पर जब झुक-झुक जाऊँ,
::तूफ़ानों से लड़ते-लड़ते
::झंझा में फँस कर थक जाऊँ,
:गिर-गिर चलने देना मुझको, क्षण भर भी आधार न देना !
::ज्वार उठे सागर में चाहे,
::नौका फँसे भँवर में चाहे,
::देख घिरी घनघोर घटाएँ
::धड़कन हो अंतर में चाहे,
:बढ़ने देना मुझको आगे, हाथों में पतवार न देना !
::अंधकार-मय जीवन-पथ पर,
::कुश-कंटक मय जीवन-पथ पर,
::संबल-हीन अकेला केवल,
::अपना अन्तस्तल ज्योतित कर,
:मैं उठता-गिरता जाऊंगा, सुलभ-ज्योति संसार न देना !
:1945