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18:46, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
आज विश्व की महाशक्ति को मुझे चुनौती दे देने दो !
::मानव-पथ पर,
::युद्ध निरन्तर,
:चारों ओर मचा कोलाहल
:जाता जिससे आकाश दहल
::मिटा सबेरा,
::घिरा अँधेरा,
मुझको अपने उर-साहस की, आज परीक्षा ले लेने दो !
::लहरें आयीं,
::विप्लव लायीं,
:तूफ़ान उठे सागर-तल में,
:बिजली कड़की बादल-दल में,
::पतवार नष्ट,
::संबल विनष्ट,
अंधकार-मय भीषण क्षण में जीवन-नौका को खेने दो !
1945