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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:छा गये सारे गगन पर
:नव घने घन मिल मनोहर,
:दे रहे हैं त्रास्त भू को
:आज तो शत-शत दुआएँ !
::देख लो, कितनी अँधेरी हैं घटाएँ !
:कर रहा है व्योम गर्जन
:मंद्र ध्वनि से, वाद्य-सा बन,
:चाहता देना सुना जो
:आज सारी स्वर-कलाएँ !
::देख लो, ये व्योम-चेरी हैं घटाएँ !
:अरुक बरसो बिन्दु जल के
:तीव्र गति से, ना कि हलके,
:विश्व भर में वृष्टि कर दो
:दूर हों सारी बलाएँ !
::देख लो, कितनी घनेरी हैं घटाएँ !
:1949
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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
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:छा गये सारे गगन पर
:नव घने घन मिल मनोहर,
:दे रहे हैं त्रास्त भू को
:आज तो शत-शत दुआएँ !
::देख लो, कितनी अँधेरी हैं घटाएँ !
:कर रहा है व्योम गर्जन
:मंद्र ध्वनि से, वाद्य-सा बन,
:चाहता देना सुना जो
:आज सारी स्वर-कलाएँ !
::देख लो, ये व्योम-चेरी हैं घटाएँ !
:अरुक बरसो बिन्दु जल के
:तीव्र गति से, ना कि हलके,
:विश्व भर में वृष्टि कर दो
:दूर हों सारी बलाएँ !
::देख लो, कितनी घनेरी हैं घटाएँ !
:1949
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