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11:47, 6 फ़रवरी 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम बधानी
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<poem>
छै तु भि हुयाीं गुप चुप,छौं मैभि होयुं चुप-चुप
फूल हमारी माया कु खिललू कनक्वै
मन त्वैमा मैन जब खोली थौ
सोचि द्यौलु जबाब त्वैन बोली थौ
मै सारा लग्यंू बाटु हेरणू छौं,कब तैं रैली सोचणी चुप
जगवाळ म कखी पराण न चलि जौ
तेरि स्याणी मेरा मन म न चलि जौ
गेड़ खोली ज भेद बोली ज, कब तैं रैली सोचणी चुप
न हैंसदू बसंत जाणी न रूझौंद चैमास
मै ख्याल तेरू सोर तेरू बारा मास
बिन बोल्यां औ गौळा भेंट्यै जा, कब तैं रैली सोचणी चुप
</poem>