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12:17, 6 फ़रवरी 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम बधानी
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<poem>
चार पैसि हाथ म ऐन
अर जिकुड़ि लगि कबळाण
घत् लगदै पौंछिगे
उमेदु क अचानक होटल म
जख कच्चि अर मच्छि
रतब्याणि तैयार ह्वै जांदिन
चार दिन पैलि
बड़ु नौनु बिमार ह्वै त
सयाणा जीन कर्ज दिनि
नौनु वन्नि मरिगे
अर पैसा उड़गिन दारू मांसु म
स्वैण पौर भूख
अर बिमारि न मरिगि छै
अब एक छोरा लग बच्यूं छ
उबि जबारि !
पर निर्भागि चैतु
अजांै भि नि चेति
</poem>