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अनुराधा महापात्र / परिचय

4 bytes added, 05:58, 10 फ़रवरी 2020
आजकल अनुराधा महापात्र कोलकाता की पिछड़ी बस्तियों, झुग्गी-झोपड़ियों और स्लम उलाकों में समाज सेवा का काम करती हैं और आजीविका के लिए पत्र-पत्रिकाओं में लेखादि लिखती हैं तथा पुस्तकों का सम्पादन करती हैं। उनके बड़े भाई का परिवार, उनके छोटे भाई-बहन अब उन्हीं के साथ दक्षिणी कोलकाता की सन्तोषपुर कॉलोनी में रहते हैं। यह इलाका बांग्लादेश से भारत आए हिन्दू शरणार्थियों का इलाका माना जाता है। कोलकाता को मध्यवर्गीय और उच्चवर्गीय बँगला लेखकों का गढ़ माना जाता है, जहाँ बहुत कम लेखक ऐसे हैं, जो श्रमिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अनुराधा महापात्र की कविताओं में उनका गाँव बोलता है और जिस श्रमिक वर्ग का वे प्रतिनिधित्व करती हैं, वह श्रमिक वर्ग बार-बार उभरकर सामने आता है। उनका पहला संग्रह चैपहुल्सलुप (फूलों का ढेर) 1983 मेम में प्रकाशित हुआ था। दूसरा संग्रह अधिभास मणिकर्णिका (वैवाहिक उपवास का शोक) 1987 में छपा। फिर उनकी तीसरी किताब थी — अम्मुकुलेर गन्ध (आम की ख़ुशबू)। 1990 में प्रकाशित इस किताब में उनकी आत्मकथात्मक कविताएँ और आत्मकथात्मक गद्य था।बंगला भाषा की तमाम साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रिकाओं में उनकी कविताएँ छपती रहती हैं। आजकल बड़ी संख्या में प्रकाशित होने वाली ’देश’ जैसी व्यावसायिक पत्रिकाओं में भी उनकी कविताएँ प्रकाशित होती हैं। हाल ही में कैरोलिन राइट ने परामिता बैनर्जी और ज्योतिमय दत्त के साथ अनुराधा महापात्र की कविताओं का एक संग्रह एनअदर स्प्रिंग डार्कनेस’ के नाम से अँग्रेज़ी में अनुवाद करके अमरीका में प्रकाशित किया है।
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