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खो बैठे / हरेराम बाजपेयी 'आश'

1 byte removed, 13:34, 13 फ़रवरी 2020
कुछ पाने की अभिलाषा में,
जो था वह भी खों बैठे,
पलकों पी9चे पीछे दर्द छुपा था,
हवा मिली तो रो बैठे।
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