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उसे सब ख़बर तो है / आनन्द किशोर

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<poem>
मंज़िल की ओर जाने की कोई डगर तो है
क्या होगा रास्ते में उसे सब ख़बर तो है

पहले तो बेख़ुदी थी अभी नीमजाँ हुये
दी थी दवा जो आपने करती असर तो है

दिखती है इक लकीर सी ज़िन्दा धुऐं की फिर
लगता बुझी सी राख में जलता शरर तो है

देता वही निजात कड़ी धूप से सदा
बेशक़ तुम्हारी राह में छोटा शजर तो है

आदत है घूरने की बुरी पासबाँ में बस
अच्छी मगर है बात कि रखता नज़र तो है

बेचा नहीं ज़मीर , है किरदार शानदार
रोटी कमा ले सिर्फ़ कि इतना हुनर तो है

इतना भी कम नहीं है किसी दूसरे से तू
बेशक़ न देवता है मगर इक बशर तो है

'आनन्द' आफ़ताब मुक़द्दर में गर नहीं
लेकिन तेरे नसीब में रश्के क़मर तो है
</poem>
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