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<poem>
रोटियाँ फिर मिल न पायीं
हैं कृषक हड़ताल पर

देह बनकर
राजपथ पर हैं खड़े
देश का आधार ही
आधार की खातिर लड़े
चुप खड़ी सत्ता
मगर इस हाल पर

रेत-सम सूखे
नयन हैं रो रहे
चीखते
प्रतिरोध पीड़ा ढो रहे
ढोल पीटा जा रहा है
खाल पर

क्या डरेगा,
रोज जो मरता रहा है
घाव से भी
स्नेह जो करता रहा है
चोट देगा एक दिन वह
ढाल पर
</poem>
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