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दिन-रात ढूँढता तुझको मन lमन।
बीती जीवन की घटनाएँ सुधियाँ बनकर मन पर छातीछातीं, मेरे मन को विह्वल करके यह नयनों तक है हैं आ जाती lहैंतब दर्द, आह, तन्हाई में छाने लगते नयनों पर घन lजातीं।
जैसे तू मुझे बुलाती थी स्वर वही गूँजते कानों मेंतब दर्द, फिर से जग जाते हैं जैसे नव प्राण हृदय-अरमानों आह, तन्हाई में lफिर मुझे जलाने लगता है मेरे मन उपजा द्वन्द्व-दहन l छाने लगते नयनों पर घन।
जैसे तू मुझे बुलाती थीस्वर वही गूँजते कानों में,फिर से जग जाते हैं जैसेनव प्राण हृदय-अरमानों में। फिर मुझे जलाने लगता हैमेरे मन उपजा द्वन्द्व-दहन। जब बार-बार चिल्लाता हूँ
तब कंठ करुण स्वर गाता है,
मेरे पीड़ामय शब्दों सेकागज़ सारा रँग जाता है lहै। ये कविताएँ ही करती हैं जीवन का कम एकाकीपन lएकाकीपन।
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