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दिल का दर्द अभी छोड़कर तुम समझे कोई ।जाओ सुनयने!अभी ज़िन्दगी का दिया जल रहा है
दुनिया में आसान बहुत है तुम्हारे बिना सर्जना क्या रहेगीअरमानों की सेज सजानाकरेंगीं प्रकट क्या कहो व्यंजनाएँ,पर जग में सबसे मुश्किल है सच्चे मन से प्रीत निभाना।अपने आँसू पी जाऊँगा द्रवित हो बहेंगे, सभी स्वप्न मेरेरात-रात भर वह है रोई।धुलेंगीं सभी प्रेममय कल्पनाएँ।
चलते-चलते प्रणय -पंथ पर जिऊँगा तुम्हारे बिना प्राण! कैसेपड़े फफोले हैं पगतल में,आँसू सूख चुके आँखों के विरह-व्यथा के इस मरुथल में।बस नीरव आहें अंतर में मन की कोमलता अब खोई।यही सोच मेरा हृदय गल रहा है।
उर में आगबिछी है मधुर चाँदनी आज भू परहवा बह रही, मौन रजनी मनोहर, हृदय धीर खोकर तुम्हें जप रहा हैमिला है प्रणय का मधुर प्राण! अवसर। नहीं प्यास अधरों परमन की अधूरी रहे अबरुको स्वप्न मनमें अभी पल रहा है। प्रिया! इस जगत की विषम वीथियों मेंअगर कुछ अमिट है, यही प्रेम-उपवन उजड़ा पतझरधन है, नहीं प्रेम-सा है,सुखद कुछ जगत मेंबिखर गए वो ढाई-आखर न विरहा सदृश प्राण! कोई अगन है।हुआ अगर हूँ हृदय पीड़ित मधुकर-सा।में बसा प्राणधन! मैंमैंने जिसका हित चाहा थाउसके उर भी पीड़ा बोई।ढली साँझ-सा क्यों हृदय ढल रहा है।
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