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मेरा तो अपराध यही है, मैंने तुमसे प्यार किया है l है।
कौन मिटाएगा तुम बिन अब इस जीवन की तिमिर निशा को, कौन मिटा सकता है तुम बिन
प्रिय दर्शन की अमिट तृषा को।
दोष तुम्हें दूँ या जग को दूँ -
खुद जीवन निस्सार किया है।
भूलूँ कैसे वह आलिंगन और साथ जो देखे सपने, इस बेगानी दुनिया में बस तुम मुझको लगते थे अपने ।अपने। कली अधखिली रही प्रेम की -खारों काँटों से अभिसार किया है lहै।
मेरी बस इतनी अभिलाषा
हो मधुमास तुम्हारे आँगन, अधर तुम्हारे हँसी बिखेरें हास भरा हो तेरा सारा जीवन। मेरा क्या मैंने जो पाया -उसको ही स्वीकार किया है lहै।
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