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मेरी आँखों के नीर तुम्हें बहने का है अधिकार नहीं। जो तुमको निधि कहकर रोके जीवन में अब वह प्यार नहीं।। नहीं।
है रहा कहाँ कुछ जीवन में बस बचे अधूरे सपने हैं,जिसमें है भाव-समर्पण का जो अपनों से भी अपने हैं। अब सिहर-सिहर इन सपनों को पंकिल करना स्वीकार नहीं।
विचलित उरअब सिहर-अम्बुधि-लहरों में सिहर इन सपनों कोको पंकिल विरह व्यथा का ज्वार बहुत,दुख से अकुलाए अधरों में है दारुण-दुखद पुकार बहुत। कम होगा नहीं विरह आतप दो व्यर्थ अश्रु उपहार नहीं lकरना स्वीकार नहीं।
विचलित उर-अम्बुधि-लहरों मेंहै विरह व्यथा का ज्वार बहुत,दुख से अकुलाए अधरों मेंहै दारुण-दुखद पुकार बहुत। कम होगा नहीं विरह आतपदो व्यर्थ अश्रु उपहार नहीं। सुन जिसने भी दुख को पाला वेदना लहर उसके मन में,जो आँसू व्यर्थ गँवाओगेकरुणा खोएगी जीवन में। जिस उर में प्यार बसा प्रिय का अब भरो वहाँ अंगार नहीं।
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