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मैं रोता हूँ रात-रात भर l भर।
इक जैसे लगते निशि औ दिन
क्षण-क्षण जाते मेरे गिन-गिन,
अधजागी-अधसोई आँखेंकल्पित हो जाती रह-रह कर l मैं रोता हूँ रात-रात भर l कर।
बार-बार आवाजें आती
लगता प्रिय ज्यों मुझे बुलाती,
इधर-उधर मैं तकता उसको
मध्य-निशा में सहसा उठकर l मैं रोता हूँ रात-रात भर l उठकर।
थकती जब मन की अकुलाहट
दब जाती सुधियों की आहट,
पीड़ा तब सोने लगती है खुद अपने सर को सहला कर lमैं रोता हूँ रात-रात भर lकर।
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