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14:12, 18 फ़रवरी 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राहुल शिवाय
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|संग्रह=
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<poem>
बगरो घोॅर बनाबै नै छै
आबेॅ छप्पर पर
अंगना मेॅ दाना आबी केॅ
चुगै छलै बगरो
फुदकी.फुदकी बुलै छलै हो
उड़ै छलै बगरो
आबे कन्हौं कहां सुनै छी
चींचींचीं के स्वर
बड़का.बड़का चिड़िया के
ऊ बच्चा रँग लागै
बगरो सब चिड़िया मेॅ सबसेॅ
सच्चा रँग लागै
खैलै कूदै छलै साथ मेॅ
नै माना वों डर
आबै घोॅर बडोॅ छै मातुर
दिल छोटोॅ होलै
यही कारणोॅ सेॅ बगरो रँग
साथी बिसरैलै
अपना स्वारथ मेॅ मानव नेॅ
छीनै सबके घर
</poem>