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<poem>
यदि तुम्हें यह सब पसंद नहीं
तो तुम चले जाओ

मैं तो प्रश्न पूछता हूँ
चीज़ों को ज्यों-का-त्यों
स्वीकार नहीं करता
उनके भीतर जाकर
उनके पीछे जाकर
उन्हें जाँचता-परखता हूँ
यदि तुम्हें मिट्टी का माधो पसंद है
तो तुम चले जाओ

मैं तो ईश्वर को नहीं जानता
यह कायनात बना कर जो उसे
बेतरतीब ढहने के लिए छोड़ दे
मैं तो उस ईश्वर को नहीं मानता
यदि तुम उसके अंध-भक्त हो
तो तुम चले जाओ

मैं तो मित्रों से भी खरी-खरी कहता हूँ
लाग-लपेट करना मुझे नहीं आता
यदि तुम पद और नाम की वजह से
सच को सच और झूठ को झूठ
नहीं कह सकते
तो तुम चले जाओ

मुझे सरहदें नहीं भातीं
मैं तो हवा-सा यायावर हूँ
मेरे लिए खो जाना ही
घर आना है
यदि तुम सीमा-रेखाओं के दास हो
तो तुम चले जाओ...
</poem>
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