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05:05, 6 मार्च 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुसुम ख़ुशबू
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|संग्रह=
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<poem>
ख़ार रख दो गुलाब ले जाओ
हां यही इंतेख़ाब ले जाओ
उन चरागों में रोशनी कम है
मेरे चेहरे की ताब ले जाओ
मैंने पहरों तुम्हीं को सोचा है
तुम ग़ज़ल का ख़िताब ले जाओ
तुमको हर पल नया उरूज मिले
मेरे सारे सवाब ले जाओ
बाग़बां ने कहा खिज़ाओं से
हर कली का शबाब ले जाओ
मेरी ख़ामोशियों को समझो तुम
और सारे जवाब ले जाओ
मेरे अल्फ़ाज़ बामआनी हैं
आओ ख़ुशबू ये बाब ले जाओ
</poem>