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<poem>
जब ख़्यालों में तू उतरता है
वक़्त भी झूम कर गुज़रता है

मुझको हैरत से देखने वालो
ग़म से इंसां यूं ही बिखरता है

जब मैं जलती हूं शम्मा की मानिंद
इक पतंगा तवाफ़ करता है

तू परिंदा है शान से उड़ जा
शाख़ दर शाख़ क्यों ठहरता है

एक वो दिन कि तू हमारा था
एक ये दिन कि तू मुकरता है

तू भी मासूम है बहुत ख़ुशबू
इस क़दर कौन प्यार करता है
</poem>
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